खुद को विशुद्ध व्यापारी मानने वाले ‘पद्मश्री’ श्रीधर वेंबू एक ऐसी शख्सियत हैं, जो समाज के लिए काम तो करना चाहते हैं, लेकिन इसके लिए किसी प्रकार के सम्मान या सराहना को स्वीकार करने में संकोच करते हैं.
सॉफ्टवेअर डेवलपमेंट फर्म जोहो के सीईओ को जब पद्मश्री दिए जाने की घोषणा की गई तो इस पर मुदित होने के बजाए उनकी प्रतिक्रिया थी कि इस प्रकार का सम्मान वर्षों से नि:स्वार्थ भाव से समाज के लिए काम करते रहने वाले व्यक्तियों को मिलना चाहिए. उन्होंने तो अभी शुरुआत भर ही की है.
आप सोच रहे होंगे कि आखिर यह विशुद्ध व्यवसायी श्रीधर समाज के लिए करते क्या हैं? श्रीधर का नाम चर्चा में तब आया था, जब वे कोरोना के दौर में पढ़ाई से वंचित बच्चों को पढ़ाने के लिए तमिलनाडु के तेंकासी गांव में आकर रहने लगे थे. शुरू में गांव के आठ-दस बच्चे ही उनसे पढ़ने के लिए आते थे, लेकिन अपने अनोखे तरीके से श्रीधर सर की क्लास बच्चों को रास आने लगी, जिसमें उन्हें होमवर्क नहीं मिलता था, लेकिन नए—नए तरीकों से सीखने को काफी मिलता था.
तब से तमिलनाडु का यह छोटा सा गांव ही उनका ठिकाना है, वह नहीं चाहते कि गांवों से पलायन हो, इसलिए वह खुद तो वर्क फ्रॉम होम कर ही रहे हैं, साथ ही चाहते हैं कि उनके नौ हजार से अधिक कर्मचारी अपने—अपने गांव से ही काम कर सकें.