कुछ लोग दु:ख में डूबकर खुद को दूसरों से अलग कर लेते हैं तो कुछ दूसरों के दु:ख को दूर करना अपने जीवन का मकसद बना लेते हैं.
अहमदाबाद के मेहता दम्पत्ति ने कोविड महामारी के कारण अपने बेटे को खो दिया था. एक जवान इकलौते बेटे की मृत्यु के आघात से उबरना आसान नहीं होता, लेकिन उन्होंने इस दु:ख का सामना इस वैश्विक बीमारी से जंग लड़ रहे लोगों की मदद करके किया.
जो उनके साथ हुआ, वह किसी और के साथ न हो. इसलिए रसिक मेहता और उनकी पत्नी कल्पना मेहता ने तय किया कि वे अधिक से अधिक लोगों को कोरोना की वैक्सीन दिलाएंगे और जरूरतमंद लोगों की हर प्रकार से मदद करेंगे.
इसके लिए उन्होंने बेटे के लिए कराई गई 15 लाख रुपए की एफडी भुना ली और हर सुबह ऐसे लोगों की तलाश करने लगे, जिन्होंने वैक्सीन नहीं लगवाई थी. वे ऐसे लोगों को अपनी कार में वैक्सीन लगवाने ले जाते. उन्होंने एफडी से मिली राशि का उपयोग दो सौ से अधिक आइसोलेटेड रोगियों को कोरोना की किट दिलाने में किया और अपने खर्च से साढ़े तीन सौ से अधिक लोगों को कोरोना से बचाव के लिए वैक्सीन लगवाई. यही नहीं, उन्होंने कोरोना मरीजों को अस्पताल लाने—ले जाने के लिए अपने निजी वाहन को भी एक एम्बुलेंस में बदल दिया.