ज्यादातर जगहों पर बड़े बच्चों को स्कूल जाने के लिए मनाने की कोशिश करते नजर आते हैं, लेकिन झारखंड के लातेहार जिले में तस्वीर एकदम उलट है. यहाँ बच्चे बड़ों की क्लास लगाते हैं. लंबे समय तक नक्सल प्रभावित रहा यह क्षेत्र शिक्षा से वंचित रहा. सवा लाख से अधिक निरक्षर लोगों के इस गाँव में ज्ञान का प्रकाश तब बिखरा, जब शिक्षा की मशाल, इलाके बच्चों ने खुद अपने हाथों में संभाल ली.
जिले के गाँवों में आठवीं और इससे ऊपर की कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों ने अपने माता-पिता और परिवार के लोगों को पढ़ाने का जिम्मा तो वे भी लिखना-पढ़ना सीखने लग गए. आज आलम यह है कि ऐसे में जब जिले में सरकार का प्रौढ़ साक्षरता अभियान 2018 से ही बंद पड़ा जंग खा रहा है, बड़ों को बिटवा सर की क्लास रास आने लगी है और जिले के साढ़े सात सौ में से 200 गाँवों की 600 जगहों पर बच्चे ही बड़ों की पाठशालाएं लगा रहे हैं. स्कूल से लौटकर आने के बाद बच्चे हफ्ते में पांच दिन, रोजाना दो—दो घंटे की क्लास लेते हैं और उन्हें अक्षर व पहाड़े सिखाते हैं. बच्चों के उत्साह और बड़ों की इसी लगन का नतीजा है कि आज क्षेत्र के छह हजार पुरुष और दस हजार महिलाएं साक्षर हो चुके हैं.
इस प्रगति को देखकर सरकारी मशीनरी भी सक्रिय हो गई है और उसने दो अक्टूबर तक जिले के सभी निरक्षरों को साक्षर बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है. इसके लिए प्रौढ शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले एनजीओ की मदद से निरक्षर लोगों की सूची बनाई जाएगी और दीवार लेखन, पुस्तक वाचन एवं अन्य माध्यमों से निरक्षरों को प्रेरित कर साक्षरता अभियान से जुड़ने के लिए कहा जाएगा.
पढना लिखना अभियान के तहत निरक्षर व्यक्तियों को 4 माह की अवधि में 120 घंटे की बुनियादी शिक्षा प्रदान की जाती है. इसके बाद राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय शिक्षा संस्थान द्वारा बुनियादी साक्षरता आकलन किया जाता है और इसमें पास होने पर साक्षर होने का सर्टिफिकेट दिया जाता है.