दोस्तो, सिटीजन आॅफ मोबाइल रिपल्बिक यानि सिमोर में आपका स्वागत है. आज वर्ल्ड गिव डे, 4 मई के अवसर पर हमें इस पोर्टल को आपके सुपुर्द करते हुए दिली खुशी हो रही है. सिमोर के मूल में यह विचार है कि इस दुनिया में और इस समाज में रहते हुए हम सभी को कभी न कभी, किसी न किसी की मदद की जरूरत पड़ती है. इंसानियत की खूबसूरती यह है कि हममें से अधिकतर अपने—अपने स्तर पर दूसरों की सहायता की यथासंभव कोशिश करते हैं. सहायता और सहयोग की भावना एक ऐसा एहसास है, जो वक्त पड़ने पर इंसान के भीतर खुद ही पैदा होता हो जाता है. किसी को उससे कहना नहीं पड़ता कि तुम अमुक भलाई का काम करो. सिमोर ऐसी ही कोशिशों को एक मंच पर लाने की एक छोटी सी पहल है, जो एक बड़े सपने का मार्ग प्रशस्त कर रही है.
यह सपना है मोबाइल की वाइड और हैंडी पॉवर का पॉजिटिव इस्तेमाल करते हुए एक ऐसा देश तैयार करने का, जो भौगोलिक, सांस्कृतिक, भाषाई, जातीय, धार्मिक, आर्थिक जैसी हर तरह की सरहदों की बंदिशों से परे हो और जहाँ सिर्फ एक ही भाषा बोली जाती हो— सहयोग की, एक ही संस्कृति हो— सहायता की, एक ही करेंसी चलती हो—नेकी की.
नेकी एक ऐसा पेड़ है, जिस पर कभी पतझर का असर नहीं होता. ऐसे दौर में भी, जब भौतिकतावादी और आत्मकेंद्रित सोच अपने चरम पर है, हमारे पूरे समाज में नेकी के पौधे, पेड़, शाखाएं, फूल इंसानियत को बचाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं. इसका परिचय हमें मार्च 2020 से लगातार मिल रहा है, जब कोरोना नाम की वैश्विक महामारी ने लोगों को एक बार फिर से मदद और साथ खड़े होने की अहमियत समझाई और जिसके बस में जितना था, उसने दूसरों की मदद की. अगर इंसान में मदद का यह जज्बा न होता तो शायद इस संकट से उबर पाना संसार के लिए बहुत मुश्किल हो गया होता.
नेकी या मदद का कोई खास चेहरा नहीं है… मदद कैसी भी हो सकती है, किसी की भी हो सकती है. इसके लिए हमें बहुत प्रभावशाली या बहुत अमीर होने की जरूरत नहीं है. कुदरत ने हमें ऐसा बनाया है कि हम किसी भी रूप में दूसरों को मददगार बन सकते हैं. रास्ते के बीचों बीच पड़ा पत्थर उठाने से लेकर पहाड़ काट कर रास्ता बनाने तक, एक पौधे को पानी देने से लेकर जंगल उगाने तक, किसी भूखे को खाना खिलाने से लेकर भोजन के नए और सस्टेनेबल सोर्स खोजने तक, किसी को सही रास्ता बताने से लेकर सड़कें बनवाने तक… नेकी की कोई न्यूनतम या अधिकतम सीमा नहीं है. बस इसके लिए एक ही चीज चाहिए, वह है दूसरों को काम आने का जज्बा. आप सभी में यह जज्बा है, इसे पहचानिए और संकल्प लीजिए कि हम दिन में कम से कम एक काम ऐसा जरूर करेंगे, जिसकी वजह से हमें अपने मनुष्य होने की खुशी हासिल हो.
नेकी कर दरिया में मत डालिए, उसे दुनिया के सामने लाइए ताकि दूसरे भी उससे इन्सपायर हो सकें. इस हाथ से दो तो उस हाथ को पता नहीं चलना चाहिए वाला जमाना अब नहीं रहा, विज्ञान ने भी खोज निकाला है कि जब हमारा एक हाथ कुछ करता है तो मष्तिष्क के संदेशों के जरिए दूसरे हाथ को इसका पता चल जाता है. शर्माना बुराई के लिए चाहिए, अच्छाई के लिए नहीं. अगर आप कोई भी अच्छा काम करते हैं तो उसके बारे में हमें बताएं, हमें उसे सिमोर पर पब्लिश कर खुशी होगी.
- संदीप अग्रवाल
संस्थापक