बीसवीं सदी के फरहाद

हमने बहुत सोचा कि सिमोर की शुरुआत हम किससे करें… बहुत सारे लोगों ने बहुत बड़े—बड़े काम किए हैं दूसरों की मदद के लिए. लेकिन, सीमित संसाधनों और दुनियादारी से दूर रहने के बावजूद, लोगों की भलाई के लिए नि:स्वार्थता, लगन, जुनून और अविरल श्रम—साधना की जो मिसाल दशरथ मांझी ने पेश की है, उसकी मिसाल अन्यत्र दुर्लभ है. इसी ने उन्हें सेल्फलेसनेस और नेकी की दुनिया के आईकॉन के रूप में स्थापित कर दिया है. इसीलिए हमारे ख्याल से सिमोर की पहली कहानी दशरथ मांझी की ही होनी चाहिए थी… आपका क्या ख्याल है?

फरहाद ने नहर खोदने के बाद पहाड़ काटकर रास्ता बनाना शुरू किया था, ताकि खुसरो शीरीं का विवाह उसके साथ कर दे…लेकिन वे दोनों मिल न सके. सदियों बाद, दशरथ मांझी ने पहाड़ काटकर रास्ता बनाया, ताकि फिर किसी फरहाद को अपनी शीरीं से जुदा न होना पड़े.

गया के करीब गहलौर गांव के एक गरीब मजदूर के रूप में जाना जाने वाले दशरथ मांझी का जन्म 14 जनवरी 1929 को हुआ था. माउंटेन मैन के नाम से प्रसिद्ध मांझी के बारे में पूरे देश और दुनिया को जब पता चला कि उन्होंने केवल एक हथौड़ा और छेनी लेकर अकेले ही 360 फुट लंबी 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊँचे पहाड़ को काट के एक सड़क बना डाली तो सब हैरान रह गए. 22 वर्षों तक लगातार मेहनत के बाद जब यह रास्ता बनकर तैयार हुआ तो इसने जिले के अतरी और वजीरगंज ब्लाक की दूरी को 40 किलोमीटर घटाकर 55 से 15 किलोमीटर कर दिया.

दशरथ मांझी

यह रास्ता बनने से पहले गाँव के लोगों को छोटी से छोटी जरूरत के लिए वहाँ से पास के कस्बे जाने के लिए एक पूरा गहलोर पहाड़ पार करना पड़ता था या उसका चक्कर लगाकर जाना पड़ता था. एक दिन उनकी पत्नी फाल्गुनी देवी उनके लिए खाना लेकर आ रही थी, तो पहाड़ के दर्रे में गिर गयी. मांझी उस वक्त पहाड़ के दूसरे छोर पर लकड़ी काट रहे थे. बाजार दूर था, इसलिए फाल्गुनी देवी को समय रहते दवाईयां और इलाज नहीं मिल पाया और उनकी मृत्यु हो गई.
दशरथ मांझी ने संकल्प लिया कि वह अकेले अपने बूते पर गहलोर पहाड़ के बीचों बीच से रास्ता निकालेंगे ताकि अतरी और वजी़रगंज की दूरी कम हो जाए. शुरू में लोगों ने जब उन्हें यह करते देखा तो उन्हें बहुत समझाया और उन्हें पागल कहकर मजाक भी उड़ाया, लेकिन उन पर जुनून सवार था, जिसने 22 साल तक उनका पीछा नहीं छोड़ा, जब तक कि यह रास्ता बनकर तैयार नहीं हो गया. उनकी जिद के आगे नतमस्तक होकर गाँव के लोग भी उन्हें सहयोग करने लगे. कभी खाना देकर, कभी औजार देकर तो कभी काम में हाथ बँटाकर.
इसी मेहनत, लगन और सब्र का नतीजा है यह सड़क, जो 110 मीटर लंबी और 30 फुट चौड़ी है. इसकी गहराई करीब साढ़े सात मीटर है. आज मांझी इस ​दुनिया में नहीं हैं. लेकिन उनकी बनाई यह सड़क, चुनौतियों के सामने इंसानी ​हौसलों की जीत की एक सशक्त मिसाल के रूप में पूरी दुनिया को प्रेरणा देने का काम कर रही है.

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