आत्मनिर्भरता से आलोकित

देश के बहुत सारे गाँवों की तरह वह भी मूलभूत सुविधाओं की कमी से जूझता एक गाँव था. यहाँ भी बिजली की भारी कमी थी और बिजली नहीं थी, तो बहुत सी जरूरी सुविधाएं भी नहीं थीं,​ जिनकी उपलब्धता बिजली पर निर्भर है. लेकिन, करीब 25 साल पहले इस गाँव ने महसूस किया कि कब तक विकास के लिए दूसरों की मदद का इंतजार करते रहा जा सकता है और अपनी तकदीर खुद बदलने की राह पर पहला कदम रख दिया और आज वह एशिया में सबसे अच्छे गांवों में शुमार किया जा सकता है.

यह कहानी है तमिलनाडु के कोयम्बटूर जिले के मेट्टपालयम तालुका में स्थित ओदंथुरई गांव की, जिसकी तस्वीर बदलनी शुरू हुई 1996 से, जब आर. शणमुगम इस गाँव की पंचायत के अध्यक्ष बने. उन्होंने इस बात का खाका बनाना शुरू हुआ कि गाँव की समस्याएं क्या—क्या हैं और उन्हें दूर करने में सरकार की ओर से मिलने वाली राशि का किस तरह से उपयोग किया जा सकता है.

परिवर्तन के इस अभियान का आगाज हुआ, कंक्रीट के घर, स्वच्छ पानी, शौचालय, बिजली, सड़क जैसी गांव की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ. जब यह लक्ष्य हासिल हो गया, तब भी पंचायत के पास चालीस लाख रुपए बचे हुए थे.शणमुगम ने इस बची राशि से विंडमिल लगाने पर विचार किया. लेकिन इसके लिए डेढ़ करोड़ रुपए की जरूरत थी. उन्होंने बाकी की रकम के कर्ज लिया और पवनचक्की स्थापित की और देखते ही देखते गाँव इतनी बिजली बनाने लग गया कि दो दशकों के भीतर ही न सिर्फ उसका पूरा ऋण उतर गया, बल्कि वह राज्य के बिजली बोर्ड को बिजली बेचकर मुनाफे की स्थिति में आ गया.

आज यह गाँव बिजली उत्पादन के मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर है. यहाँ 25 प्रतिशत बिजली सोलर पैनलों से उत्पन्न होती है और बाकी 75 प्रतिशत पवनचक्की से. यही नहीं, आज इस गाँव में कोई भी परिवार ऐसा नहीं है, जिसके पास अपना घर न हो. हर घर में शौचालय है, सड़कें साफसुथरी रहती हैं, क्योंकि कोई भी सड़क पर कूड़ा नहीं फेंकता है और कचरा प्रबंधन पर सही अमल होने के कारण लोग निर्धारित स्थान पर ही कचरा फेंकते हैं.

ग्राम पंचायत द्वारा सरकारी योजनाओं को पूरी ईमानदारी से लागू किया जाता है. व्यक्तिगत विकास योजना के तहत हर घर को दुधारू पशुओं के साथ परिवार सुपुर्द किया जाता है, जिससे उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में मदद मिलती है. दूध बेचने के लिए ग्राम पंचायत ने दूध विभाग एवन के साथ अनुबंध ​भी किया है. शुद्ध पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए 1999 में गांव में जल उपचार संयंत्र की स्थापना की गई थी, जिससे पूरे गांव को लगातार पेयजल की आपूर्ति होती है.

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