भारत के वारेन बफेट कहे जाने वाले राकेश झुनझुनवाला, सिर्फ 62 साल की उम्र में चल बसे. अपनी सूझबूूझ, शेयर बाजार की गहरी समझ और दूरदर्शिता के बूते पर उन्होंने सिर्फ पाँच हजार रुपए के निवेश को 37 सालों में 5.8 बिलियन डाॅलर की पूंजी में बदल दिया और दुनिया के 438वें सबसे अमीर व्यक्ति बने.
लेकिन, उन्हें वारेन बफेट आॅफ इंडिया के रूप में जाने की वजह सिर्फ उनकी सम्पत्ति ही नहीं, बल्कि परोपकार की भावना भी है. पिछले साल, एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा भी था कि उनके पास पैसा है, लेकिन वह इसे खर्च करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते. वह भगवान से अधिक पैसे नहीं माँगते, बल्कि वह ताकत माँगते हैं कि इस पैसे को लोगों के कल्याण के लिए खर्च कर सकें.
श्री झुनझुनवाला सिर्फ कहते ही नहीं थे, बल्कि करने में भी यकीन रखते थे. वह कहा करते थे कि उनके चार बच्चे हैं. तीन का उन्होंने जन्म दिया है और चौथा है परोपकार. इसीलिए वह अपनी आय का चौथा हिस्सा अर्थात 25 प्रतिशत परोपकार कार्यों के लिए दान दिया करते थे. एक अनुमान के मुताबिक पिछले साल उन्होंने जितना धन दान किया, वह लगभग 13.69 लाख रुपए प्रतिदिन होता है. इसके लिए उनका नाम 2021 की एडलगिव हुरुन इंडिया परोपकार सूची में भी शामिल किया गया.
पिछले साल उन्होंने 500 करोड़ रुपए लगाकर, बच्चों की हार्ट सर्जरी, उनके न्यूट्रीशन और एक स्पोर्ट्स अकादमी की स्थापना जैसे उद्देश्यों को लेकर, रेयर फेमिली फाउंडेशन नाम से एक फिलैंथ्रोपिक फाउंडेशन बनाने की भी घोषणा की थी. उनका विचार था कि वह वर्ष 2025 तक इस फाउंडेशन को पाँच हजार करोड़ रुपए ट्रांसफर कर देंगे और हर साल अपनी आय का दो प्रतिशत तब तक देते रहेंगे, जब तक कि यह राशि 25 हजार करोड़ रुपए तक नहीं पहुँच जाती.
इतना सब करने के बावजूद श्री झुनझुनवाला को, स्वयं को दानवीर कहलाना पसंद नहीं था. उनका कहना था कि हमें एक बात का एहसास होना चाहिए कि इस धन का दाता भगवान है, यह मत सोचो कि हमने इसे कमाया है.