आॅक्सीजन देता श्वास

पिछले साल इन्हीं दिनों, जब कोरोना की दूसरी लहर पहली से ज्यादा कहर बरपा रही थी, और लोग आॅक्सीजन की कमी और कालाबाजारी से हलकान थे तो तनुज बंसल, संदीप गर्ग, अमित डबास, गौरव केडिया, विकास मित्तल, अवनींद्र जैन, पुनीत जैन, मान्य रंजन,अमित धीर, और प्रत्यूष गुप्ता जैसे दस आईआईटीयन दोस्तों ने इसका समाधान खोजने के लिए कमर कस ली और एक—दूसरे से जुड़कर श्वास नाम का एक ग्रुप बनाकर जरूरतमंदों की मदद के लिए मैदान में कूद पड़े.

Image courtesy: Blickpixel (Pixabay)

विदेशों में नौकरी कर रहे इन दोस्तों ने शुरुआत की राजस्थान के कोटा में एक अस्पताल में आॅक्सीजन प्लांट लगाने से. इनका फोकस था, टियर 2 और टियर 3 शहरों में कम से कम पाँच प्लांट लगाने का, क्योंकि छोटे शहरों में ऑक्सीजन का संकट ज्यादा शिद्दत से महसूस किया जा रहा था. श्वास के सामने एक बड़ी चुनौती थी, ऐसी तरकीब निकालना, जिससे आॅक्सीजन बनाने पर लागत भी कम आए और प्लॉट जल्द से जल्द शुरू हो सके.

लेकिन, चूंकि ये सभी दोस्त एनर्जी, इंडस्ट्रियल गैसेज, प्रोसेस इंजीनियरिंग, ईपीसी, हेल्थ केयर जैसे सेक्टर से जुड़े हुए थे, इसलिए उनके अनुभव ने इस काम को काफी आसान कर दिया. लंदन में रहने वाले तनुज ऑयल रिफाइनरी में काम कर चुके थे, जहाँ पीएसए
तकनीक से हाइड्रोजन और नाइट्रोजन का उत्पादन होता है. इस तकनीक को ऑक्सीजन उत्पादन में भी इस्तेमाल किया जा सकता था.

अगली समस्या थी काम करने के लिए टीम जुटाने की. ग्रुप के सभी साथी अलग-अलग देशों में काम कर रहे थे, इसलिए फील्ड में जाकर काम करना संभव नहीं था. इसके लिए इंडियन बायो गैस एसोसिएशन की मदद ली गई, जिसने अपनी टीम को काम में लगा दिया. क्राउड फंडिंग की मदद से प्लांट के लिए पैसा जुटाया गया और सिर्फ बीस दिनों के भीतर पहला ऑक्सीजन प्लांट लगाने में कामयाबी हासिल कर ली दिया, जिसमें 330 लीटर आॅक्सीजन प्रति मिनट उत्पादन किया जा सकता था. इस पर पचास लाख रुपए की लागत आई.

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